भगवान के पवित्र स्पर्श ने
उनकी मुक्त कर दिया,
खूबसूरती अभिशाप में बदल गई
उस पुरानी कहानी को, फिर से लिखा।
न्यायप्रिय अवतार पुरुष के
आशीर्वाद से वह बाहर आई,
प्रस्तर बनी थी,मौन थी,
अभिशाप का वह भार था,
कालिख से ढकी हुई,
एक छिपा हुआ सत्य था।
एक युग की प्रार्थना थी,
सदाचार और धैर्य से भरी,
पुराने जीवन की स्मृतियाँ,
ध्यान में डूबी हुई,
नयन में नेह-जल था,
एक नारी, एक कथा,
एक अनकहा इतिहास था।
ऋषि का संकल्प था,
नियम से जो बंध गई,
चंद्रमा सी कोमलता भी,
शिला में समा गई।
पर समय का चक्र चला,
सत्य को फिर गढ़ गया,
राम के चरणों से छूकर,
पत्थर भी खिल गया।
पवन में गूँजी ध्वनि,
सपनों को जीवन मिला,
दिल से लिखी कविता की तरह,
फिर से जागा एक नया सवेरा।