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एक पागल औरत की कहानी

एक पागल औरत की कहानी

Entry Code: S11PH03

Author: Jinju Thulaseedharan

Company: UST ,Trivandrum

2024 Hindi

गाँव की गली में, एक पागल औरत,

हर दिन थी हंसी का पात्र, उस्की जीवन कठोरत।

उसके आँखों में दर्द का सागर,

खोया था जिसने, अपना प्रिय पुत्र को


अनगिनत क्षणों में है बसी उसकी पीड़ा, ,

गांव वालों की हंसी उसकी ओर फेंके गए हर पत्थर में बसती

हर चोट उसकी गहराई में छुपा है एक सागर,

कोमल हृदय से जो सहा, वो दर्द है सागर।


प्रकृति की एक सजीव धारा, फिर भी बनी निशाना,

हर पत्थर की गूंज में वो सुनती, खुद का अफसाना।

आंसुओं में सुलगती आग, आँखों में बुझती एक किरन,

वो पागल, संसार की परछाई में अपनी कहानियाँ बुन।


लोगों की बातें, तीर से चुभती,

वह अकेली, पर आत्मा थी उसकी दहकती।

फिर एक दिन, नदी में आई लहर,

एक बच्चा डूबा, संघर्ष कर रहा बेअसर।


बिना विचारे, वह कूदी जलधार,

उथल-पुथल में बचा लाई, जीवन का आधार।

गाँव था स्तब्ध, यह चमत्कार था,

उस पागल में माँ का दिल उजागर था।


समझ सके अब लोग, उसकी वेदना,

एक पागल औरत नहीं, वह थी ममत्व की साधना।

जिसने खोया था अपना, उसने किसी और को पाया,

उस दिन पागल औरत नहीं, वह जीवन की देवी कहलाया।|

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