मैंने देखा था एक घर सजा,
जहाँ हँसती थी माँ हर रोज़ सवेरा।
पापा की बाहों में था एक जहाँ,
युद्ध ने छीन लिया वो चिराग, जो घर में जलते थे।
भैया के संग जो खेला था कभी,
आज वो तस्वीरों में कैद है सभी।
बहन की चूड़ियाँ टूटी पड़ीं,
अब उन हाथों में नहीं है हँसी।
एक पल में उजड़ गया मेरा संसार,
बारूद की गंध में डूबा प्यार।
जो घर था मेरा, वो जलकर मिटा,
सपनों की कब्र पर युद्ध क्यों खड़ा?
मैं बच्चा हूँ, पर समझता हूँ,
गोलियों से कोई जीतता नहीं।
बंदूकों की बोली में कौनसा सुकून?
क्यों हर दिल में बसती है नफरत ही?
क्या मिला तुम्हें इन लाशों से?
क्या पाया तुमने इन चीखों से?
बोलो न, क्या दुनिया यही चाहती है?
जहाँ हर आँख में बस पानी बहता है।
अब तो रुको, अब और नहीं,
बस बहुत हुआ, ये दौर नहीं।
मैं अकेला हूँ, पर ग़म में नहीं,
हर अनाथ बच्चा आज संग है यहीं।
युद्ध से कुछ भी हासिल न होगा,
बस उजड़ा आँगन, टूटा सपना होगा।
अभी भी समय है, जाग जाऐ संसार।
बचपन को लौटा दे, मिटा दे हर युद्ध ।
शांति दो, प्यार दो, इंसान बनो,
अब हथियार नहीं, उम्मीद बोओ।
वरना वो दिन दूर नहीं,
जब मासूम आँखें सवाल करेंगी—
"क्या यूँ ही जलती रहेगी ये दुनिया?"