न जाने कब ये लम्हा गुज़र जाएगा,
दुनिया की नजर में कुछ और, तुम्हारी नज़र में कुछ और।
कैसे समझाऊँ कि ये पल भी
कभी ख़ामोशी से गुज़र जाएगा।।
काश कोई दुनिया को मेरी नज़र से देखे,
बस मैं ही समझूँ अपने दिल की आहट।
हर पल की चाहत बस इतनी सी,
कि तेरी नज़र मुझ पर टिकी रहे।।
सोचा था कि कभी हकीकत बनेगा ये सपना,
पर वहीं से टूटे दिल को सहारा मिला।
क्या यही मेरी भूल थी,
कि तुझसे बेपनाह मोहब्बत कर ली?
क्या यही है मेरी तक़दीर,
कि किसी को पाकर, किसी को खो दूँ?
ज़िंदगी का यह अजीब खेल,
हर दिन, हर रात, बस बिखरती रहूँ।।
काश मिले कोई राह, जहाँ इन उलझनों से बच सकूँ,
जहाँ कोई न कहे कि मेरी गलती क्या थी।
क्या कोई और भी है मेरी तरह,
जो अपनी ही तक़दीर से लड़ रहा हो?
टूटे दिल को जोड़कर फिर से उम्मीद सजाई थी,
मगर वही उम्मीद किसी ने फिर से तोड़ दी।।