यह घटना कई साल पहले की है।

मैं अपने दोस्तों के साथ त्रिवेंद्रम से बैंगलोर ट्रैन में सवार कर रहे थे । लगभग ५ बजे  हम ट्रैन पर चढ़े, व्यवस्थित करने और रात होने से पहले सुरम्य दृश्यों को निहारने के बाद आवाज़ सुनाई दिए,

“चाय चाय! चाय चाय!”

सबने चाय पीने और समोसे खाने शुरू किया । थोड़ी देर के बाद ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी और मै बाथरूम के तरफ हाथ दोने के लिए निकल गयी। हाथ दो रही थी, तब मैं एक महिला को ट्रैन चढ़ते हुए देखा – दोनों हाथों में समोसे लिए हुए ।

“जल्दी चढ़ जाओ, ट्रैन निकल जाएगी”, किसी ने बहार से आवाज़ दिया। हम मदद करेंगे सोचे मगर दुर्भाग्य से वह महिला ‘धड़ाम’ प्लेटफार्म पर समोसे के साथ गिर गयी । सबलोग उन्हें घेर लिया, हम जल्दी से ट्रैन से उतरे और उनकी मदद करने चले। “चाची, आप ठीक हो?”, मैं धीरे से उनको पूछे।

“मेरे कमर की ऐसी के तैसी हो गयी बेटा”, चाची दर्द से कहे।

मैं उनको ट्रैन चढ़ने मदद कर रही थी, तुरंत ट्रैन रवाना हो गई। मैंने चाची को छोड़ दिया और जल्दी से ट्रेन का पीछा किया, लेकिन मैं उसे पकड़ने में असमर्थ रहा। न तो मेरी चाची और न ही मैं ट्रेन पर चढ़ पा रहे थे। जैसे ही हम एक-दूसरे को देख रहे थे, हम मंच पर मौजूद लोगों से हँसी की आवाज़ सुन सकते थे। मेरे पास मोबाइल फोन नहीं था और मेरी चाची के पास भी नहीं था. मैं बिना देर किए स्टेशन मास्टर के पास आने वाली ट्रेन के बारे में पूछने के लिए दौड़ा।

“आजकल ट्रेनों के छूटने की समस्या बढ़ रही है,  मैं थोड़ी किसी को समझा सकता हूँ “, एक बुजुर्ग स्टेशन मास्टर हमसे कहे। 

“सर, आप अगली ट्रैन, तत्काल इस सभी के बारे जानकारी दे सकते हैं?”, उम्मीद के साथ मैं पूछी।

” बैंगलोर के लिए अगली ट्रेन कल सुबह है“

तभी धीरे से खबर सुनकर चाची आ गईं।

धीमी आवाज़ से आंटी पूछी, “बेटी, अगली ट्रेन कब है?” मुझे खुद पर और उस पर गुस्सा आ रहा था।

“कल सुबह है चाची”

मैं  शांत रहा और अगले उपाय पर विचार करता रहा जबकि चाची लगातार बातें करती रहीं।

मैं चाची का लेके बहार बस के बारे में जानकारी के लिए निकली । पता चला की १० बजे बैंगलोर के लिए बस है, मगर मेरे पास पैसा नहीं था ।

तभी एक काका मिले और बोले, “हम यही काम करते है, आप चाहे थो में टिकट कटवा देता हु; तुम लोग मुझे बाद में दे देना।”

मुझे नहीं पता था क्या करना है और चाची और मेरे लिए टिकट ली । १० बजे तक में चाची से बात नही की । बस आ गये, और जैसे हम दोनों चढ़ने लगे वोही काका २०० रूपए दे कर बोला, “रख लो, बाद में दे देना”

हम दोनों बस में चढ़े, चाची अपने सीट में बैठी और मुझे कहा, “सॉरी बीटा, सब मुसीबत मेरे कारन शुरू हुआ?”

“चलेगा चाची, आगे का हम सोचते है”

हम दोनों एक दुसरे से रात भर बात किया और पता नहीं चला कब नींद लगा।

थोड़ी ही देर में सुबह हुआ और बैंगलोर के होसुर पहुंचा । ख़ुशी-ख़ुशी में अपने हॉस्टल के तरफ जाने के लिए ऑटो ढूंढ रही थी, और मन-ही-मन सोचे मेरे दोस्त सभी हॉस्टल पहुंचे गए होंगे।

चाची भी धीरे-धीरे बस से उत्तरी और मुस्कुराते हुए पूछी, “कौन सी जगह है यह?”

” चाची यह होसुर, बैंगलोर है; आपको कहाँ जाना है?” मैं पूछी ।

“बैंगलोर!  मैं तो हैदराबाद आने वाली थी?” चाची बोली।

“आप तो बंगलोरे के रिश्तेदारों के बारे तो बोल रही थी” आश्चर्यचकित मैं खड़ी रही, अरे! नही फिर से मुसीबत..

                         और कहानी जारी है …