आसूँ जो आज बरस पड़ें हैं,
बहने दें उन्हें खुलके.
चींख जो मन में दबाकर रखा था,
गरजने दें उन्हें खुलके.

समाज के दायरों का डर जो कसकर बाँधा हैं आपने,
भूल जाइए उन्हें ज़िंदगी के इस पल मैं.
आपके निजी दायरों का जो अपमान हुआ हैं
खफा होकर चिल्ला लीजिये ज़रा बेख़ौफ़ होकर .

अपने सपनों से नजरे चुराना छोड़िये,
फिर वह चाहें जितना ही निराला क्यों न हो.
अपनी उड़ान खुद तय करें,
आखिर यह सफर आपको स्वयं ही तय करना हैं.

किसी और के बताया राह पर चलना भी एक गुन्हा ही हैं,
अपने आप से किया हुआ गुन्हा,
भरपाई जिसे आपने अपने खुशियों से देना है.
आज अपने पैरों पर खड़े हो गए हो तो जीना भी सीख लो.