सोनू के लिए माँ का गोदी वही जगह थी जहाँ उसने अपने बचपन के सभी छुट्टियों को बिताया था। परंतु, अब उस जगह में अजनबीपन की महक महसूस होती थी। मां को अल्जाइमर की बीमारी थी और उनका दिमाग धीरे-धीरे खो रहा था , और माँ अक्सर भूल जाती थीं कि वह अब जवानी के दिनों में किसी स्कूल की अध्यापिका थीं।
वक़्त का एहसास सोनू के लिए बहुत खास था। जब वह घर लौटता, तो मां उससे अजनबी सा बर्ताव करतीं थीं। सोनू के दिल को छू जाता कि उसकी माँ, जिन्होंने हमेशा उसका साथ दिया, अब उसे नहीं पहचानतीं थीं।
सोनू ने ठंडी साँस ली और बोला, “माँ, क्या तुम चाहोगी कि हम आज बाग़ में टहलियाँ घूमें? बहुत सुंदर फूलों की खोज करेंगे।”
माँ ने उसे देखकर मुस्करा दिया, जैसे ही उसने अपनी बेटी को समझ लिया हो। वे बाग़ में गए, और सोनू ने उसे फूलों के नाम बताते रहे। चंदनी रात की बहुत सी कहानियाँ और हंसी-मजाक के साथ, वह दोनों एक दूसरे के साथ बहुत अच्छा समय बिताए।
जब वे वापस घर लौटे, माँ ने सोनू के हाथों में होंठ दबा दिया और बोली, “तुम्हारी माँ चाहती है कि तुम हमेशा उसे अच्छे पल में रखो, चाहे उसकी यादें कितनी भी कमजोर हों।”
सोनू ने अपनी माँ के आँचल में सर दबा के कहा, “मैं हमेशा तुम्हारा साथ दूंगा, माँ। आपकी हर मुसीबतों का सामना करेंगे और आपको हमेशा खुश रखेंगे।”
वक़्त ने उन्हें एक नए रिश्ते की ओर बढ़ने का मौका दिया। सोनू ने माँ के साथ समय बिताना शुरू किया, चाहे उसकी माँ उसे पहचानतीं हों या नहीं। धीरे-धीरे, माँ की मुस्कान और सोनू के साथीपन की भावना बढ़ती गई।
सोनू ने एहसास किया कि वक़्त ने न केवल उन्हें अपने साथीपन की ओर बढ़ने का मौका दिया, बल्कि उसकी माँ को भी उसके साथीपन की मिठास का अहसास करा दिया।
सोनू ने यह सीखा कि प्रेम और समर्पण का मतलब यह नहीं कि आपके पास सभी समस्याओं का समाधान हो, बल्कि यह मतलब है कि आप समस्याओं का सामना करते हुए भी अपने प्रियजनों के साथ देना ।
वक़्त का एहसास उनकी ज़िन्दगी में नई राहें खोलता रहा, और सोनू ने अपनी माँ के साथ बिताए गए समय की कीमत को समझ लिया।