हाँ, मैं अलग नहीं, तुम जैसा ही हूँ

हाँ, मैं अलग नहीं, तुम जैसा ही हूँ

मेरी भी कुछ इच्छाएँ हैं

मेरी भी कुछ आशाएँ हैं

मुझे अलग न समझो

तुम-सा कोई एक ही हूँ मैं।

मेरा भी एक बचपन था

मेरे भी कई सहपाठी थे

और सबसे था मुझे प्यार

और सबकी आँखों में देखा मेरे प्रति लगाव।

पर जैसे-जैसे बढ़ते गए,

सबमें देखा बदलाव

कुछ में था वही दोस्ती

कुछ में देखा छल-कपट की आग।

पर इन सबमें से दुख तब लगा

जब मेरे अपने भी मुझे सहानुभूति की नज़रों से देखने लगे।

        निराश हुआ, हताश हुआ

        जब मैंने पाया कि मेरे प्रति सबको है दया की भावना

        पर किसी को नहीं है मेरे पर

        और मेरी काबिलियत पर विश्वास।

इसने मुझको तोड़ दिया

पर मैं तो था नहीं टूटने वाला

ठान ली मैंने अपने-आप से

न मैं हारूँगा, न मैं रोऊँगा

खड़े होकर रहूँगा एक दिन

अपने बल-बूते पर

क्योंकि मैं अलग नहीं

तुम जैसा ही हूँ।